Thursday, 9 April 2020

Organization Structure - Meaning and Definitions (संगठन संरचना - अर्थ एवं परिभाषाएँ)

संगठन संरचना (अर्थ एवं परिभाषाएँ):
Organization Structure (Meaning and Definitions):
संगठन की क्रिया का मूल उद्देश्य औपचारिक संगठनात्मक संरचना का निर्माण करना है । संगठन संरचना एक ढाँचे के रूप में होती है । इसके अन्तर्गत व्यक्तियों के बीच कार्यकारी सम्बन्धों (Functional Relations) की व्यवस्था होती है । अन्य शब्दों में, किसी व्यावसायिक संस्था की कुल संगठनात्मक व्यवस्था व कार्यरत व्यक्तियों के सम्बन्धों को प्रकट करने वाला ढाँचा संगठन संरचना कहलाती है इस प्रकार संगठन संरचना में विभिन्न स्थितियों पदों एवं समस्त कार्य-समूह के लम्बवत् (Vertical) व समतल (Horizontal) सम्बन्ध स्थापित किए जाते हैं यह संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कार्य करने वाले व्यक्तियों के बीच सौंपे गए कार्यों, परिभाषित भूमिकाओं तथा निर्मित सम्बन्धों का एक तन्त्र है । संगठन रचना के अन्तर्गत स्थापित किए गए सम्बन्ध पूर्णत: औपचारिक होते है । अत: संगठनात्मक संरचना वह ढाँचा है जिसके अन्तर्गत प्रबन्धकीय तथा क्रियात्मक (Operating) कार्य निष्पादित किए जाते हैं । संगठन संरचना में विभिन्न अधिकारियों के बीच प्रशासनिक सम्बन्ध स्थापित एवं निश्चित किए जाते हैं ।
संगठन संरचना की परिभाषाएँ (Definitions of Organization Structure):
संगठन संरचना की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं:
  • हर्ले (Hurley) के अनुसार- “संगठन संरचना एक की विभिन्न स्थितियों के बीच एवं विभिन्न स्थितियों को ग्रहण करने वाले व्यक्तियों के बीच सम्बन्धों का ढाँचा है ।”
  • विलियम एच. न्यूमैन (William H. Newman) के अनुसार- संगठन संरचना किसी उपक्रम की सम्पूर्ण संगठन-अवस्था से व्यवहार करती है ।
  • फ्रेड लुवान्स के अनुसार- “संगठन संरचना से अभिप्राय संस्थात्मक व्यवहार के लिए बनाए गए ढाँचे से है। ”
  • अल्वर्ट हेनरी एच. के अनुसार- “संगठन संरचना वह अंबा है जिसमें प्रबन्धकीय तथा परिचालनात्मक कार्य निष्पादित किए जाते हैं।”
  • विलियम एच. न्यूमैन के शब्दों में- “संगठन-संरचना किसी उपक्रम की समस्त संगठन-व्यवस्था से सम्बन्ध रखती है और इसे निर्धारित करते समय प्रबन्धकों को अनेक बातों जैसे विशिष्टीकरण का लाभ, कार्यात्मक अधिकारों की सीमा, सम्प्रेषण की समस्या, उपलब्ध व्यक्तियों की योग्यता तथा संगठन की समस्या उपलब्ध व्यक्तियों की योग्यता तथा संगठन की लागत आदि तत्वों को ध्यान में रखना पड़ता है ।”
  • थियो हैमन (Theo Haiman) के अनुसार- “यह एक ऐसा संरचनात्मक ढाँचा है जिसके अन्तर्गत विभिन्न प्रयत्नों को समन्वित तथा एक-दूसरे से सम्बन्धित किया जाता है ।”
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि संगठन संरचना का अभिप्राय किसी संगठन के विभिन्न भागों के मध्य औपचारिक सम्बन्ध स्थापित करने से है इन सम्बन्धों का निर्धारण पहले कर लिया जाता है । यह एक धुरी है जिसके इर्द-गिर्द संगठन के कार्यों का सम्पादन किया जाता है ।
अत: हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि संगठन संरचना सभी व्यक्तियों जैसे प्रबन्धकों, अधिकारियों तथा कर्मचारियों की संस्था में स्थिति तथा उनके पारस्परिक औपचारिक सम्बन्धों को व्यक्त करने वाला ढाँचा है जिसे संगठन चार्ट (Organization Charts) तथा मैनुअल्स (Manuals) द्वारा प्रकट किया जाता है ।
संगठन संरचना की विशेषताएं (Characteristics of Organization Structure):
संगठन-संरचना की निम्नलिखित चार प्रमुख विशेषताएँ होती है:
  • कार्यकारी सम्बन्धों की स्थापना (Establishment of Working Relationship):
    संगम संरचना किसी व्यावसायिक संस्था में काम कर रहे कर्मचारियों, अधिकारियों तथा प्रबन्धकों के बीच कार्यकारी सम्बन्धों की स्थापना करती है ।
  • औपचारिक ढाँचा (Formal Structure):
    संगठन संरचना किसी उपक्रम अथवा किसी संस्था में काम कर रहे किसी विभिन्न व्यक्तियों जैसे प्रबन्धक अधिकारी तथा कर्मचारी तथा उनके समूहों के बीच व्यवहारों के लिए बनाया गया औपचारिक ढाँचा होती है ।
  • एक साधन (A Means):
    संगठन संरचना किसी क्रियाओं के निष्पादन तथा परिणामों को प्राप्त करने का साधन है ।
  • चार्टों व पुस्तिकाओं द्वारा प्रदर्शित (Presented through Charts and Manuals):
    व्यक्तियों में पाये जाने वाले सम्बन्ध अदृश्य होते हैं । अत: उन्हें चार्टों व मैनुअल द्वारा प्रदर्शित करके स्पष्ट किया जाता है ।
संगठन संरचना के निर्माण के उद्देश्य :
(Purposes of Designing Organization Structure):
संगठन संरचना का निर्माण निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए किया जाता है:
  • सभी आवश्यक क्रियाओं का निष्पादन किया जा सके तथा कोई भी अनावश्यक क्रिया न की जाए ।
  • सभी आवश्यक कियाओं का निष्पादन करते समय इनमें दोहरापन (Duplication) न होने पाये ।
  • सभी क्रियाएँ समन्वित रूप में निष्पादित की जाएँ ।
  • संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करना ।
  • संगठन की कार्यक्षमता बढ़ाना ।
संगठन संरचना के प्रारूप अथवा प्रकार (Forms or Types of Organization Structure):
व्यावसायिक संस्था का आकार समय के साथ-साथ बढ़ता चला गया । अतएव संगठन की समस्या भी समय के साथ अधिक कठिन व जटिल होती गई । इस समस्या को हल करने के लिए संगठन के विभिन्न स्वरूप उभर कर सामने आए ।
इस तथ्य पर श्री फ्रैंक ने बल दिया है । उनके अनुसार- “किसी उपक्रम का आकार बढ़ जाने के कारण यदि किसी व्यक्ति विशेष द्वारा उसकी क्रियाओं का निरीक्षण करना कठिन हो जाये, तो ऐसे व्यक्ति अपना कुछ कार्य अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों को सौंप देना चाहिए ।”
अत: अधिकार की प्रकृति के आधार पर आजकल संगठन के निम्न प्रारूप देखने में आते हैं:
  1. रेखा संगठन (Line Organization);
  2. रेखा व कर्मचारी संगठन (Line and Staff Organization);
  3. क्रियात्मक संगठन (Functional Organization);
  4. परियोजना संगठन (Project Organization);
  5. मैट्रिक्स संगठन (Matrix Organization)
  1. रेखा संगठन का अर्थ (Meaning of Line Organization):
    यह संगठन का सबसे प्राचीन व सरल प्रारूप है । इस संगठन को कई नामों से पुकारा जाता है, जैसे- सैनिक संगठन (Military Organization), विभागीय संगठन (Departmental Organization), लम्बवत् संगठन (Vertical Organization) आदि । संगठन के इस रूप का मूल आधार यह है कि इसमें अधिकार एक सीधी रेखा में ऊपर से नीचे की ओर चलते हैं तथा उत्तरदायित्व का नीचे से ऊपर की ओर एक सीधी रेखा में प्रवाह होता है ।
    इस प्रकार अधिकारों व उत्तरदायित्वों का प्रवाह एक निश्चित एवं सीधी रेखा में होता है । इस कारण इसे रेखा संगठन कहते हैं । इस संगठन में विभिन्न स्तरों पर काम करने वाले व्यक्तियों के बीच स्पष्ट, प्रत्यक्ष एवं औपचारिक लम्बवत् होते हैं । इसलिए इसे लम्बवत् संगठन के नाम से पुकारते हैं । इसे सैनिक संगठन इसलिए कहते हैं कि इस प्रकार के संगठन को प्रयोग का आरम्भ सेना में ही हुआ ।
    मोटेतौर पर सेना में इसी संगठन को प्रयोग में लाया जाता है । सैनिक संगठन में यदि कोई आदेश देना होता है तो वह सर्वोच्च अधिकारी से निम्न और निम्नतर और अधिकारियों द्वारा अन्तिम सैनिक पंक्ति तक पहुँचता है । इस संगठन को विभागीय संगठन इसलिए कहते हैं क्योंकि इस संगठन में संस्था के का कार्यों अनेक विभागों में विभाजित कर दिया जाता है । प्रत्येक विभाग स्वतन्त्र होता है और उसका एक अधिकारी होता है । यह अधिकारी अपने विभाग के लिए पूरी तरह उत्तरदायी होता है ।
    इस अधिकारी के नीचे क्रमश: पदाधिकारी नियुक्त किए जाते है जो क्रमश: अपने उच्च पदाधिकारियों के प्रति उत्तरदायी होते हैं । इस प्रकार संगठन में सामान्य प्रबन्धक (General Manager) सबसे बड़ा अधिकारी होता है । इसके अधीन विभागीय प्रबन्धक होते हैं । विभागीय प्रबन्धकों को आदेश सामान्य प्रबन्ध से मिलते हैं जो इन आदेशों के अपने सहायक कर्मचारियों से लागू करने के लिए देता है ।
    इस प्रकार सामान्य प्रबन्धक का आदेश विभागीय प्रबन्धकों के माध्यम से नीचे के पदाधिकारियों के पास लागू करने के लिए पहुँचता है । जैसे-जैसे व्यवसाय का आकार बढ़ता जाता है उसी हिसाब से विभागों की संख्या भी बढ़ती जाती है और संगठन संरचना का आकार पिरामिड की तरह चौड़ा होता जाता है ।
    मैकफरलैंड (McFarland) के शब्दों में: “रेखा संरचना में प्रत्यक्ष शीर्ष रेखा सम्बन्ध होते हैं जो प्रत्येक स्तर की स्थिति एवं उन स्तरों के ऊपर नीचे के कार्यों के साथ सम्बन्ध स्थापित करता है ।” एल.ए. ऐलन ने रेखा संगठन को आदेश सम्प्रेषण एवं उत्तरदेयता की शृंखला कहा है ।
    रेखा संगठन की विशेषताएँ (Characteristics of Line Organization):
    1. इस संगठन में आदेश व अधिकार ऊपर से नीचे की ओर एक रेखा में चलते है तथा प्रार्थना व निवेदन (Request) नीचे से ऊपर की ओर पहुँचाए जाते हैं ।
    2. अधीनस्थों को आदेश केवल एक अधिकारी द्वारा दिये जाते हैं इसलिए आदेश में एकरूपता रहती है ।
    3. प्रत्येक कर्मचारी को आदेश उसके निकटतम अधिकारी द्वारा प्राप्त होते है तथा वह इसके प्रति ही दायी होता है ।
    4. प्रत्येक अधिकारी के नियन्त्रण में अधीन कर्मचारियों की संख्या सीमित होती है ।
    5. संगठन का यह सबसे आसान व प्राचीन प्रकार है ।
    6. सभी कार्यों का दायित्व सर्वोच्च अधिकारी का होता है ।
    7. इसमें अधिकारियों व अधीनस्थों के बीच प्रत्यक्ष लम्बवत् सम्बन्ध होते हैं ।
    8. अधिकार सत्ता सर्वोच्च अधिकारी के पास केन्द्रित होती है ।
    9. सर्वोच्च अधिकारी का मुख्य कार्य आदेश एवं निर्देश देना एवं उनका दूसरी से पालन कराना है ।
    रेखा संगठन का प्रकार (Types of Line Organization):
    यह संगठन दो प्रकार का होता है:
    1. शुद्ध रेखा संगठन (Pure Line Organization):
      संगठन की इस प्रणाली के अर्न्तगत एक स्तर पर एक ही प्रकार की क्रियाएं की जाती हैं । इसमें प्रत्येक व्यक्ति नीचे से लेकर उच्च स्तर तक एक ही प्रकार का कार्य करता है । प्रत्येक क्रिया समूह स्वयं में एक पूर्ण इकाई होती है जिसमें अपने कार्य को पूरा करने का सामर्थ्य होता है ।
      उद्योगों पर आजकल, इस प्रकार का संगठन प्राय: नहीं पाया जाता क्योंकि व्यवहार में ऐसे उद्योग कम देखने को मिलते हैं जहां सारी क्रियाएं समान होती हैं यह वर्गीकरण केवल नियन्त्रण की सुविधा के लिए किया जाता है ।
      भारतीय जीवन बीमा निगम इसका आहरण है, जो निम्नलिखित चार्ट से स्पष्ट है:
    2. बिभागीय रेखा संगठन (Departmental Line Organization):
      इस प्रणाली के अन्तर्गत सम्पूर्ण संस्थान को अनेक विभागों में विभक्त कर दिया जाता है । विभाग बनाते समय क्रियाओं की एकरूपता को ध्यान में रखा जाता है । प्रत्येक विभाग का एक अध्यक्ष होता है जो अपने विभाग के कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है । यह सामान्य प्रबन्धक से आदेश प्राप्त करता है । फिर वे अध्यक्ष प्राप्त आदेशों के अनुरूप अपने निकटतम अधीनस्थों को आदेश देते हैं ।
      इस प्रकार इस प्रणाली में अधिकारों व आदेशों का प्रवाह उच्चाधिकारियों से नीचे के अधिकारियों की ओर चलता है । सभी विभागीय अध्यक्ष संस्था में अपने विभागों से सम्बन्धित कार्य स्वतन्त्रता पूर्वक करते हैं । सभी विभागों के अध्यक्षों का स्तर समान होता है ।
    रेखा संगठन का क्षेत्र अथवा उपयुक्तता (Scope of Line Organization or Suitability):
    संगठन की यह प्रणाली निम्नलिखित क्षेत्र में अपनाई जाती है:
    • जहाँ व्यावसायिक इकाई का आकार बहुत बड़ा व जटिल न हो अर्थात जहाँ इकाई का आकार छोटा तथा मध्यम हो ।
    • जहाँ कर्मचारियों की संख्या सीमित हो ।
    • जहाँ श्रम तथा प्रबन्ध की समस्या को हल करना आसान हो ।
    • जहाँ सम्पूर्ण कार्य को विभिन्न इकाइयों में सरलता से विभक्त किया जा सके ।
    • जहाँ कर्मचारी अनुशासित हों ।
    • जहाँ एक ही प्रकृति का व्यवसाय होता हो ।
    • जिन उद्योगों में विशिष्टीकरण की आवश्यकता न हो ।
    रेखा संगठन के लाभ (Advantages of Line Organization):
    इस संगठन के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:
    • सरल (Simple): यह सबसे सरल संगठन है जिसे बनाने व चलाने की विधि सबसे सरल होती है ।
    • सुनिश्चित उत्तरदायितत्व (Clear Responsibility): इस संगम में प्रत्येक अधिकारी एवं कर्मचारी के उत्तरदायित्वों की प्रकृति सुनिश्चित होती है । वह अच्छी तरह जानता है कि वह किसके प्रति उत्तरदायी है और कौन-कौन से अधिकारी या कर्मचारी उसके प्रति उत्तरदायी हैं । अतएव इसके अर्न्तगत संगठन के विभिन्न स्तरों पर उत्तरदायित्व निर्धारित करने में कठिनाई नहीं होती ।
    • कड़ा अनुशासन (Strict Discipline): इसमें कर्मचारियों के अधिकार व नियन्त्रण क्षेत्र निश्चित होने के कारण अनुशासन बना रहता है । एक ही अध्यक्ष होने से वे अधिक अनुशासित तथा जिम्मेदार बन जाते हैं ।
    • शीत निर्णय (Prompt Decision): इस संगठन में अधिकारी शील निर्णय से सकते हैं क्योंकि अधिकतर मामलों में बे निर्णय लेने में स्वतन्त्र होते है तथा उनके पास आवश्यक अधिकार भी होते है ।
    • कर्मचारियों से सीधा सम्पर्क (Direct Contact with Subordinates): प्रत्येक अधिकारी का अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से सीधा सम्पर्क होता है अत: वह उनके कार्य व समस्याओं के प्रति सचेत रहता है ।
    • समनव्य में आसानी (Easy to Co-Ordinate): विभिन्न विभाग एक ही व्यक्ति के निर्देशन में कार्य करते है अत: उनमें समन्वय की स्थापना आसानी से की जा सकती है ।
    • लोचशीलता (Flexibility): संगठन का यह प्रारूप बहुत लोचशील है । इसमें आवश्यकतानुसार विभागों की संख्या में परिवर्तन किया जा सकता है ।
    • प्रबन्धक-विकास (Development of Management): संगठन की इस प्रणाली में विभागाध्यक्षों को विभिन्न प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं जिससे उनकी कुशलता प्रतिभा योग्यता व क्षमता का विकास होता है ।
    • दोषी को दण्ड देने में सुविधा (Easy to Penalise the Defaulter): कोई भी कर्मचारी अपने दायित्व से बच नहीं सकता । अत: दोषों व कमियों का पता लगाकर दोषी कर्मचारी को दण्ड देने की सुविधा रहती है । परिणामस्वरूप, सभी कर्मचारी निष्ठा व लगन से कार्य करते हैं ।
    • आदेश में एकता (Unity of Command): संगठन के इस प्रारूप के अन्तर्गत विभिन्न विभागों के आदेश एक ही अधिकारी से प्राप्त होने के कारण संगठन में आदेश में एकता पायी जाती हैं ।
    • स्थायित्व प्रदान करना (To Provide Stability): संगठन का यह प्रारूप संगठन को स्थायित्व प्रदान करता है ।
    • शीध्र सन्देशवाहन सम्भव (Quick Communication Possible): इस प्रारूप के अन्तर्गत सन्देशवाहन में सुगमता तथा शीघ्रता रहती है ।
    रेखा संगठन के दोष (Disadvantages of Line Organization):
    इस संगठन के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं:
    • विशिष्टीकरण का अभाव (Lack of Specialisation): आधुनिक उद्योग इतने जटिल हो गए हैं कि एक ही व्यक्ति द्वारा सभी कार्यों को कुशलतापूर्वक सम्पादन करना सम्भव नहीं है । विभागाध्यक्ष सभी क्रियाओं में विशेषज्ञ होना चाहिए परन्तु ऐसे विभागीय प्रबन्धक मिलने कठिन हैं । अत: इस प्रणाली में विशिष्टीकरण का अभाव पाया जाता है ।
    • अत्यधिक कार्य-भार (Over-Burdening): इम संगठन में सभी कार्य उच्चाधिकारी को करने पड़ते हैं जिसके कारण उन पर कार्यों का अत्यधिक भार रहता है । फलम्बरूप उन्हें संस्था के महत्वपूर्ण कार्यों के लिए अवसर ही नहीं मिल पाता; जैसे-नियोजन नियन्त्रण अनुसन्धान व विकास आदि के लिए ।
    • पक्षपात की सम्भावना (Chances of Favourism): इस संगठन में एक उच्चाधिकारी सब कुछ होता है । उसकी इच्छनुसार ही सारा काम होता है । इसलिए इस उच्चाधिकारी द्वारा मनमानी व पक्षपात करने की सम्भावना बनी रहती है । वे अपने समर्थक कर्मचारियों अथवा सम्बन्धियों को अनावश्यक लाभ पहुँचाने की मनमानी व पक्षपातपूर्ण कार्यवाही कर सकते हैं ।
    • एक ही व्यक्ति पर निर्भरता (Dependence on a Single Person): इस संगठन का सबसे बड़ा दोष यह है कि संस्था की सफलता तथा विकास एक उच्चाधिकारी की योग्यता तथा कुशलता पर निर्भर करते है क्योंकि निर्णय उसी द्वारा लिए जाते है । यदि उच्चाधिकारी अयोग्य व अकुशल होता है, तो संस्था की प्रगति रुक जाती है ।
    • पहल शक्ति का अभाव (Lack of Initiative): इस संगठन प्रणाली में सभी अधिकार उच्चाधिकारी में केन्द्रित होते हैं । अत: अधीनस्थ कर्मचारियों को निर्णय करने का मौका ही नहीं मिल पाता । दूसरे, अधीनस्थ कर्मचारियों को तो केवल आदेशों व निर्देशों के अनुरूप ही काम करने होते है जिससे इनमें पहल शक्ति का विकास नहीं हो पाता ।
    • विभागों के निर्माण में कठिनाई (Difficulty in Departmentation): एक जटिल व मिश्रित उद्योगों में विभागों का निर्माण करना बहुत कठिन कार्य होता है । साथ ही इन विभागों की स्थापना के बाद इनमें अन्तर विभागीय सम्बन्धों का निर्धारण करना भी कठिन कार्य है ।
    • फोरमैन को अधिक महत्व (More Importance to Foreman): डब्ल्यू.बी. कॉर्निल (W.B. Cornel) के अनुसार- ”फोरमैन सम्पूर्ण शॉप पर पूर्ण नियन्त्रण रखता है तथा वही प्रत्यक्ष से उत्तरदायी होता है ।” इस स्वरूप के अन्तर्गत उत्पादन का सारा भार फोरमैन पर रहता है जिससे कार्यकुशलता में कमी आती है ।
    • लोचहीन पद्धति (Non-Flexible Method): संगठन की यह प्रणाली स्थिर व लोचहीन है । इसमें एक बार पदों के बन जाने पर उन्हें बदलना अथवा समाप्त करना कठिन होता है । दूसरे, इस प्रणाली में कर्मचारियों की संख्या जरूरत पड़ने पर घटाना-बढ़ाना सम्भव नहीं होता ।
    • समन्वय की समस्या (Problem of Co-Ordination): कठोर तथा कुशल उच्चाधिकारी की अनुपस्थिति में संगठन के विभागों में समन्वय स्थापित करना कठिन होता है । एक कुशल व योग्य उच्चाधिकारी भी विभिन्न विभागों में अस्थायी रूप से सहयोग स्थापित करा सकता है ।
    • नियन्त्रण व अनुशासन का अभाव (Lack of Control and Discipline): संगठन के इस प्रारूप के अन्तर्गत संस्था अथवा उपक्रम का आकार बढ़ाना सम्भव नहीं होता यदि कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि कर भी दी जाये तो संख्या बहुत अधिक हो जाने पर नियन्त्रण एवं अनुशासन भी सम्भव नहीं रह पाता ।
    • अन्य दोष (Other Disadvantages):
      • इस प्रणाली में नियम संस्था के सेवक की बजाय स्थायी बन जाते हैं और ये व्यक्तियों के लिए नहीं रहते बल्कि व्यक्ति नियमों के हो जाते हैं ।
      • यह पद्धति बड़े उद्योगों के उपयुक्त नहीं होती ।
      • उच्चाधिकारियों को ठीक सूचनाएं नहीं मिल पातीं । कार्य-कुशलता घटती है तथा कर्मचारियों में असन्तोष पनपता है ।
      • इस स्वरूप के अन्तर्गत विभागीय अध्यक्ष अपने कार्य का विशेषज्ञ होने की बजाए Jack of all Trade but Master of None बन जाता है ।
  2. रेखा एवं कर्मचारी संगठन (Line and Staff Organization):
    उपक्रम का आकर बढ़ने, क्रियाओं में विविधता आने, तकनीकी पेचीदगी बढ़ने तथा बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ने के कारण यह अनुमान किया जाने लगा कि विभागीय अध्यक्ष दैनिक आदेश-निर्देश कार्य के साथ-साथ विशेषज्ञ के रूप में काम नहीं कर सकते । ऐसी परिस्थिति में उन्होंने विशेषज्ञों से विभिन्न क्षेत्रों में सलाह लेना प्रारम्भ किया ।
    इस तरह उपक्रम में विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाने लगी अत: लाइन प्रबन्धक कार्यकारी के रूप में काम करने लगे और स्टीफ कर्मचारी इन कार्यकारी प्रबन्धकों को विशिष्ट सलाह देने का काम करने लगे जिसे वे अपना सभी कार्य अधिक कुशलता से कर सकें ।
    स्टॉफ कर्मचारियों का कार्य सलाह देना सहायता पहुँचाना, विशिष्ट सेवाएं प्रदान करना, अनुसन्धान करना तथा विशेषज्ञ के रूप में अपना विचार प्रकट करना है । उच्च स्तर पर ये परामर्श देते हैं और निम्न स्तर पर ये सेवाएं प्रदान करते हैं ।
    इस प्रकार इस प्रणाली में “सोचने” (Thinking) तथा “करने” (Doing) की क्रियाओं को अलग-अलग कर दिया जाता है । स्टॉफ सोचने वाला व “परामर्श” (Advice) देने वाला “लाइन” कार्य करने वाला होता है । विशेषज्ञों (कर्मचारियों) की सलाह (Advice) को मानना या न मानना सम्बन्धित रेखा अधिकारी पर निर्भर करता है । इस प्रारूप की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें अधिकार-सत्ता का क्रम बना रहता है और साथ में विशेषज्ञों को सेवाओं का लाभ भी प्राप्त किया जाता है ।
    लुईस ए.ऐलन (Louis A. Allen) के अनुसार- “रेखागत कार्य वे हैं जो उपक्रम के उद्देश्यों को पूरा करने के प्रति प्रत्यक्ष रूपसे उत्तरदायी होते हैं ।” अत: इस परिभाषा से स्पष्ट है कि रेखा अधिकारियों पर संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने का उत्तरदायित्व रहता है । लुईस ए. ऐलन (Louis A. Allen) के अनुमार- “कर्मचारी से आशय संगठनों के उन तत्वों (व्यक्तियों) से है जो उपक्रम के प्राद्यमिक उद्देश्यों को प्रभावशाली ढंग से प्राप्त करने के लिए रेखा अधिकारियों की सहायता करते हैं ।”
    लुइस ए. ऐलन की इस परिभाषा से स्पष्ट है कि स्टॉफ (विशेषज्ञों) का कार्य सलाह देना होता है । विशेषज्ञों द्वारा दी गई सलाह को मानना या न मानना रेखा अधिकारी पर निर्भर करता है यह एक सहायता प्रदान करने वाली व्यवस्था है । इसकी प्रकृति पूरकता की है तथा यह रेखा अधिकारियों को उन सूचना एवं तथ्यों को प्रदान करता है जिनके आधार पर वह नीतियों का निर्माण कर सके ।
    निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि रेखा एवं “स्टाफ” (विशेषज्ञ) संगठन, वह प्रारूप है जिसके अन्तर्गत रेखा अधिकारी सभी आदेशात्मक तथा निर्देशात्मक कार्य करता है तथा विशेषज्ञ सम्बन्धित समस्या पर विचार कर रेखा अधिकारी को परामर्श देता है जिसे वह स्वीकार करने के बाध्य नहीं है ।
    मूने (Mooney) विशषज्ञों के कार्य को सहायक कार्य मानते हैं लिंडाल एफ. उर्विक के अनुसार रेखा अधिकारी का कार्य, “कार्य करना” (To Act) तथा विशेषज्ञ का कार्य “विचार करना” (To Think) है । अतएव, ऐसा कोई भी प्रारूप जिसमें आदेश तथा परामर्श का समायोजन हो, उसे रेखा तथा स्टॉफ (विशेषज्ञ) संगठन कहा जा सकता है ।
    रेखा व कर्मचारी संगठन को निम्नलिखित चित्र द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है:
  3. रेखा एवं कर्मचारी संगठन की विशेषताएं :
    (Characteristics of Line and Staff Organization):
    • “सोचने” व “करने” का कार्य अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा किया जाता है ।
    • अधिकार का क्रम भी बना रहता है और साथ ही विशेषज्ञों का परामर्श भी प्राप्त हो जाता है ।
    • अधिकार तथा उत्तरदायित्व का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर सीधी रेखा में होता है तथा शिकायत सुझाव व निवेदन नीचे से ऊपर की ओर चलते हैं ।
    • स्टॉफ को केवल परामर्श देने का अधिकार होता है । उन्हें आदेश देने या निर्णय लेने अथवा अपने निर्णय लागू करने के अधिकार नहीं होते उनके परामर्श को मानना या न मानना भी रेखा प्रबन्धकों की इच्छा पर निर्भर करता है ।
    • इस संगठन में भी “आदेश की एकता” रहती है क्योंकि यह कार्य तो रेखा अधिकारियों का ही रहता है ।
    • इस प्रारूप में रेखा तथा “स्टॉफ” दोनों की सेवाएँ उपलब्ध होती है ।
    • विशेषज्ञों का परामर्श वैज्ञानिक तथ्यों तथा वास्तविकता पर निर्भर करता है ।
    रेखा एवं कर्मचारी संगठन के लाभ (Advantages of Line and Staff Organization):
    इस संगठन के प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:
    • विशिष्टीकरण (Specialisation): यह संगठन नियोजित विशिष्टीकरण पर आधारित है । “सोचना” स्टॉफ का कम होता है तथा “करना” लाइन का । इस तरह संस्था को विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त होते है ।
    • श्रेष्ठ निर्णय (Sound Decision): इस संगठन में रेखा अधिकारियों को महत्वपूर्ण मामलों पर विशेषज्ञों से परामर्श मिलते रहते हैं जिसके फलस्वरूप रेखा अधिकारियों द्वारा लिए जाने वाले निर्णय अधिक श्रेष्ठ व सुदृढ़ होते हैं ।
    • अनुशासन (Discipline): इस संगठन में आदेश की एकता (Unity of Command) बनी रहती है । आदेश देने का अधिकार रेखा अधिकारियों के पास रहता है जिसके परिणामस्वरूप अनुशासन व नियन्त्रण प्रभावशाली चना रहता है ।
    • उन्नति व विकास के अनुसार (Opportunities for Promotion and Development) इस संगठन प्रारूप में योग्य व कुशल कर्मचारियों को उन्नति के अवसर प्राप्त होते हैं । उन्हें अपनी प्रतिभा का विकास करने के लिए विशेषज्ञों से सहायता मिलती है । उत्तरदायित्व वाले पदों की संख्या बढ़ने से भी उन्हें उन्नति के अवसर प्राप्त होते हैं ।
    • रेखा अधिकारियों के कार्य-भार में कमी (Reduces the Burden of Line Executive): रेखा अधिकारियों का कार्य-भार हल्का हो जाता है क्योंकि वे अपना काम “स्टाफ” कर्मचारियों की मदद से करते है ।
    • लोचता (Flexibility): इस संगठन में विशेषज्ञों की सेवाएँ उपलब्ध होने के कारण व्यापार के विकास व विस्तार की सम्भावनाओं के अनुसार संगठन के आकार को समायोजित किया जा सकता है ।
    • मितव्ययिता (Economical): विशेषज्ञों द्वारा दिए परामर्शों को अपनाने से उत्पादन लागत तथा विक्रय मूल्य में कमी की जा सकती । सभी प्रकार के अपव्ययों पर भी रोक लगती हे । साथ ही कर्मचारियों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है । इस प्रकार संगठन के इस प्रारूप के अन्तर्गत अनेक मितव्ययिताएँ प्राप्त की जाती हैं ।
    • अन्य लाभ (Other Advantages):
      • यह पद्धति अनुसन्धान को प्रोत्साहित करती है क्योंकि विशेषज्ञ संगठन की समस्या पर निरन्तर अनुसंधान करते रहते हैं ।
      • यह पद्धति रेखा अधिकारियों को परोक्ष रूप में प्रशिक्षण देने का कार्य करती है ।
    रेखा एवं कर्मचारी संगठन के दोष (Disadvantages of Line and Staff Organization):
    इसके मुख्य दोष निम्नलिखित हैं:
    • खर्चीली (Expensive): संगठन का यह प्रारूप काफी खर्चीला है । विशेषज्ञों की अधिकता व उनको दिया जाने वाला अधिक वेतन व्ययों में काफी वृद्धि कर देते हैं । इसके अतिरिक्त विशेषज्ञ अनुसन्धान कार्य करते हैं अत: उस पर भी खर्च करना पड़ता है एक छोटा उपक्रम तो इस संगठन को अपना ही नहीं सकता ।
    • उत्तरदायित्व का अभाव (Lack of Responsibility): “स्टॉफ” के परामर्श के क्रियान्वयन में हानि होने पर भी “स्टॉफ” को उत्तरदायित्व नहीं ठहराया जा सकता ।
    • परामर्श की उपेक्षा (Ignoring Advice): विशेषज्ञ केवल सलाह दे सकते हैं । रेखा अधिकारी प्राय: उनकी सलाह की उपेक्षा करते हैं ।
    • टकराव की सम्भावना (Possibility of Conflict): “स्टॉफ” तथा “लाइन” के प्रबन्धकों के सम्बन्धों का यदि उचित स्पष्टीकरण नहीं किया जाए तो उनमें टकराव की सम्भावना बनी रहती है । विशेषज्ञ अपने आपको अपने क्षेत्र में श्रेष्ठ मानते हैं, जबकि “लाइन” अधिकारी अपने आपको उच्च मानते हैं ।
    • रचनात्मक एवं पहल-शक्ति का अभाव (Lack of Creativity and Initiative): “सोचने” तथा “करने” के कार्य अलग-अलग हो जाने के कारण रेखा अधिकारी विशेषज्ञों पर निर्भर हो जाते हैं जिससे उनके मूल विचार व पहल-शक्ति में शिथिलता आ जाती है ।
    • कार्य में अनावश्यक देरी (Unnecessary Delay): रेखा अधिकारियों को कार्य करने से पूर्व विशेषज्ञों से सलाह लेनी पड़ती है । विशेषज्ञ काफी सोच-विचार के बाद सलाह देते हैं जिससे कार्य करने में अनावश्यक देरी होती है ।
    • अव्यावहारिक सलाह (Impracticable Advice): क्योंकि विशेषज्ञ कार्य की वास्तविक दशाओं से अनभिज्ञ होते है । इसलिए उनकी सलाह व्यावहारिक नहीं होती है ।

  • क्रियात्मक संगठन (Functional Organization):
    संगठन के इस प्रारूप का प्रतिपादन फ्रेडरिक डब्ल्यू॰ टेलर (Fredric W.Taylor) ने किया । इस संगठन को “क्रियात्मक फोरमैनशिप” भी कहते हैं । रेखा एवं कर्मचारी संगठन में स्टॉफ का काम केवल परामर्श देना होता है परन्तु संगठन के इस प्रारूप में “स्टॉफ” रेखा-अधिकारी को केवल परामर्श ही नहीं देते बल्कि उनके अधीनस्थ कर्मचारियों को प्रत्यक्ष रूप से आदेश व निर्देश भी देते हैं ।
    इस प्रकार क्रियात्मक संगठन में “स्टॉफ” (विशेषज्ञों) की योग्यता का पूरा लाभ उठया जाता है । इस संगठन में कार्य को छोटे-छोटे कार्यों में विभाजित करके उस काम के विशेषज्ञ को सौंप दिया जाता है । इस प्रकार विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त किए जाते हैं । इस गठन में अधिकारियों को विभागों की बजाय कार्यों के आधार पर बाँटा जाता है ।
    एफ. डब्ल्यू. टेलर के अनुसार- “क्रियात्मक संगठन में प्रबन्ध के कार्यों को इस प्रकार विभाजित किया जाता है जिससे सहायक अधीक्षक से लेकर नीचे तक के व्यक्तियों को इतने कम कार्य दिए जाएं जितने वे आसानी से पूरा कर सकें । यदि व्यावहारिक हो तो प्रबन्ध के प्रत्येक व्यक्ति को केवल एक ही महत्वपूर्ण कार्य दिया जाना चाहिए ।”

    टेलर ने कारखाने के प्रत्येक विभाग (Shop) में प्रबन्ध के कार्य को दो भागों में बाँटा:
    (i) योजना विभाग; (ii) कार्यकारी विभाग


    टेलर ने चार फोरमैन योजना विभाग में तथा चार फोरमैन कार्यकारी विभाग में नियुक्त करने पर जोर दिया । योजना विभाग में काम करने वाले फोरमैन नियोजन का काम करते हैं तथा कार्यकारी विभाग में काम करने वाले फोरमैन उत्पादन कराते हैं । ये फोरमैन अपने कार्य के विशेषज्ञ प्रबन्धक होते हैं । इस प्रकार कुल मिलाकर टेलर ने 8 नायकों या विशेषज्ञों की नियुक्ति का सुझाव दिया ।
    ये अधिकारी अथवा बिशेषज्ञ निम्नलिखित हैं:
    योजना विभाग के अधिकारी:
    1. समय एवं लागत लिपिक (Time and Cost Clerk): यह लिपिक श्रमिक द्वारा कार्य में लगाए गए समय का विवरण तथा काम पर खर्च होने वाली विभिन्न मदों में राशि से सम्बन्धित लेखे तैयार करता है ।
    2. कार्यक्रम लिपिक (Routine Clerk): यह लिपिक दैनिक कार्यक्रम की योजना तैयार करता है । यह कार्यों की सूची तैयार करता है तथा किस क्रम में किस व्यक्ति और यन्त्र से काम लिया जाना है, इसका निर्धारण भी करता है ।
    3. संकेत कार्ड लिपिक (Instruction Card Clerk): यह लिपिक श्रमिकों के लिए संकेत कार्ड तैयार करता है । इन कार्डों में कार्य की प्रकृति, कार्य को करने की विधि, उस कार्य में प्रयोग होने वाली सामग्री तथा यन्त्रों के प्रयोग के बारे में सूचनाएं दी जाती है तथा इन कार्डों को टोली नायकों को दे दिया जाता है ।
    4. अनुशासक (Shop Disciplinarian): इसका कार्य कारखाने में पूर्ण अनुशासन बनाये रखना है ताकि काम योजना के अनुसार चले तथा उसमें किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न न होने पाये । यह अनुशासक श्रम विवादों के समाधान मैं भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।
    कार्यकारी विभाग अथवा कारखाना स्तर से सम्बन्धित अधिकरी:
    1. टोली नायक (Gang Boss): यह श्रमिकों के कार्य निश्चित करता है तथा आवश्यक सामग्री एवं यन्त्र आदि की व्यवस्था करता है । आवश्यकता पड़ने पर कभी-कभी यह श्रमिकों को कार्य करने की पद्धति का प्रदर्शन भी करता है ।
    2. गति नायक (Speed Boss): यह नायक श्रमिकों के कार्य करने की गति का अध्ययन करना है । इससे पता चलता है कि क्या श्रमिकों के कार्य करने की गति सन्तोषजनक है ? क्या वे प्रमाणित कार्य प्रमाणित समय में कर लेते हैं ?
    3. जीर्णोद्धार नायक (Repair Boss): यह नायक देखता है कि श्रमिक अपनी मशीनों, यन्त्रों आदि को ठीक प्रकार से रखें । यह मशीनों की सफाई व तेल आदि की व्यवस्था करता है तथा इनकी टूट-फूट की मरम्मत भी करता है ।
    4. निरीक्षक (Inspector): यह निर्मित वस्तुओं की गुण व किस्म की जाँच निर्धारित प्रमाप से करता है तथा कमी होने पर नियन्त्रण की व्यवस्था करता है ।
    क्रियात्मक संगठन की विशेषताएं (Characteristics of Functional Organization):
    • इस संगठन की संरचना विशिष्टीकरण के सिद्धान्त पर आधारित है अर्थात् इस संगम में कार्यों का विभाजन विशिष्टीकरण के आधार पर छोटी-बेटी उपक्रियाओं में किया जाता है ।
    • इस संगठन प्रारूप में विशेषज्ञों को रेखा प्रबन्धकों की स्थिति में रखा जाता है अर्थात् इस संगठन में विशेषज्ञ केवल परामर्श ही नहीं देते बल्कि कार्य निष्पादन में प्रत्यक्ष सहायता करते हैं ।
    • संगठन के इस प्रारूप में प्रत्येक कर्मचारी का कार्य-क्षेत्र सीमित होता है ।
    • इस संगठन में नियोजन तथा क्रियान्वयन कार्यों को अलग कर दिया जाता है ।
    • इस संगठन प्रारूप में अधिकारी तथा उत्तरदायित्वों का वितरण विभाग के आधार पर न होकर कार्यों के आधार पर होता है ।
    • इस संगठन में एक श्रमिक को किसी एक अधिकारी की अपेक्षा अनेक अधीक्षकों अथवा आठ नायकों से आदेश प्राप्त होते हैं अर्थात् इस संगठन में आदेश की अनेकता पाई जाती है ।
    • इसमें कार्य की विधि तथा कार्य सम्पन्न किए जाने वाले समय को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाता है ।
    एफ.डब्ल्यू. टेलर ने क्रियात्मक संगठन को निम्नलिखित चित्र द्वारा अपनी पुस्तक में दर्शाया है:

  • क्रियात्मक संगठन के लाभ (Advantages of Functional Organization):
    इस संगठन के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:
    • कार्यक्षमता में वृद्धि: यह प्रारूप विशेषज्ञों की सेवाओं का पूर्ण उपयोग करता है । श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण के सिद्धान्तों पर यह संगठन संरचना पर आधारित होने से संस्था की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है । इस संगठन में कर्मचारियों व श्रमिकों को सीमित क्षेत्र में काम करना पड़ता है । अत: उनकी कार्यकुशलता बढ़ जाती है जिससे संस्था की कार्यक्षमता पर अच्छा प्रभाव पड़ता है ।
    • इस संगठन में मानसिक व शारीरिक कार्यों में अन्तर किया जाता है ।
    • इस संगठन-संरचना में संस्था के आकार के बढ़ाने के साथ-साथ अथवा विविधीकरण (Diversification) के साथ-साथ वांछित परिवर्तन करना आसान होता है परिवर्तनों का समायोजन समस्त ढाँचे को बिना बदले आसानी से किया जा सकता है । इस प्रकार यह प्रारूप अत्यन्त लोचदार (Flexible) होता है ।
    • इस संगठन में विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाती है जिससे संस्था में अनुसन्धान व शोध को प्रोत्साहन मिलता है ।
    • इस संगठन में क्रियाओं के प्रमापीकरण व विशिष्टीकरण होने के कारण बड़े पैमाने पर उत्पादन करना सम्भव होता है ।
    • संगठन की इस संरचना में अधिकारों तथा उत्तरदायित्वों का विभाजन अधिकतम सीमा तक किया जा सकता है ।
    • संचालन में मितव्ययिता (Economy in Operation): कार्यों का विभाजन होने, नई तकनीकों के उपयोग करने तथा वैज्ञानिक विधियों के अपनाने से बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाना सरल बन जाता है । जब उत्पादन का पैमाना बड़ा हो जाएगा तो प्रति इकाई लागत में भी कमी आयेगी और संचालन में मितव्ययिता आयेगी ।
    • पारस्परिक सहयोग की भावना का विकास (Development of Mutual Co-Operation): वैचारिक विषमता के अवसर नहीं मिलने से सभी कार्यरत कर्मचारियों में पारस्परिक भावना का विकास होता है । यह भावना आगे जाकर उपक्रम के लिए लाभदायक साबित हो सकती है ।
    • प्रतिस्पर्द्धात्मक शक्ति में सुधार (Improves Competitive Power): उपक्रम की विभिन्न क्रियाओं में विशिष्टीकरण आने से प्रतिस्पर्द्धात्मक शक्ति में सुधार आता है । मात्रा, कीमत एवं किस्म की दृष्टि से एक छोटा उपक्रम भी वृहद् उद्योग के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकता है उपर्युक्त लाभों के अतिरिक्त यह पद्धति प्रेरणात्मक है तथा इसमें कर्मचारियों के अधिकारों एवं दायित्वों का अधिकतम सीमा तक विभाजन किया जा सकता है, उससे उपक्रम की कुशलता बढ़ती है ।
    क्रियात्मक संगठन के दोष (Disadvantages of Functional Organization):
    इस संगठन के प्रमुख दोष निम्न हैं:
    • समन्यय की समस्या (Problem of Co-Ordination): कामों को अनेक विभागों तथा उप-विभागों में बाँट दिए जाने कारण उनकी क्रियाओं में समन्वय स्थापित करने की समस्या सामने आती है । साथ ही विभागों की संख्या बढ़ते रहने से समन्वय कार्य उतना ही कठिन होता जाता है ।
    • उत्तरदायित्व निश्चित करने में कठिनाई (Problem in Fixing Responsibility): इस संरचना में आदेशों की अनेकता होने के कारण असन्तोषजनक कार्य के लिए किसी व्यक्ति को उत्तरदायी ठहराना कठिन हो जाता है ।
    • अनुशासन का अभाव (Lack of Discipline): इस प्रारूप में नियन्त्रण का विकेन्द्रीकरण होने तथा विशेषज्ञों के बीच आपसी मतभेद रहने के कारण कर्मचारियों तथा प्रबन्धकों में अनुशासन बनाए रखना कठिन कार्य है ।
    • कार्य एवं निर्णय लेने में देरी (Delay in Decision-Making and Work): यह प्रारूप कागजी कार्यवाही को बढ़ाता है । छोटे-छोटे कार्यों के लिए भी सूचनाएँ व आदेश जारी करने पड़ते हे जिससे कार्य में देरी होती है । दूसरे इस संगठन में शीघ्र निर्णय लिए जा सकते हैं क्योंकि ये निर्णय विशेषज्ञों द्वारा सामूहिक रूप से लिए जाने होते हैं इसलिए इनमें देरी होती है ।
    • कार्य में नीरसता (Monotony in Work): इस संगठन के प्रारम्भ में श्रमिक को कार्य का एक छोटा-सा हिस्सा करने को दिया जाता है जिसे वह बार-बार करते ऊब जाता है । अत: उसे अपने कार्य में नीरसता अनुभव होने लगती है ।
    • श्रमिकों की स्थिति दुविधापूर्ण (condition of workers is miserable): इस संगठन में श्रमिकों के अनेक अधिकारी होते हैं, जैसे- इन्जीनियर, टाइमकीपर, उत्पादन प्रबन्धक, श्रम अधिकारी आदि । ऐसी स्थिति में श्रमिक किसके आदेश की पालना को प्राथमिकता दें, यह निश्चित करना कठिन होने से उनकी स्थिति दुविधापूर्ण हो जाती है ।
    • खर्चीली (Expensive): इस पद्धति को लागू करने पर उपक्रम में अनेक प्रकार के विशेषज्ञों को रखा जाता है यह पद्धति छोटे-छोटे कारखानों के लिए खर्चीली है ।

  • परियोजना संगठन का अर्थ (Meaning of Project Organization):
    एक परियोजना संगठन एक संरचना है जो परियोजना गतिविधियों के समन्वय और कार्यान्वयन की सुविधा प्रदान करता है। इसका मुख्य कारण एक ऐसा वातावरण तैयार करना है जो टीम के सदस्यों के बीच न्यूनतम मात्रा में व्यवधान, ओवरलैप्स और संघर्ष के साथ बातचीत को बढ़ावा देता है।
    परियोजना संगठन में लंबी अवधि की परियोजनाओं को पूरा करने के लिए कई क्षैतिज संगठनात्मक इकाइयाँ हैं। प्रत्येक परियोजना संगठन के लिए महत्वपूर्ण रूप से महत्वपूर्ण है। इसलिए, प्रत्येक परियोजना के लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ की एक टीम बनाई जाती है। प्रोजेक्ट टीम का आकार एक प्रोजेक्ट से दूसरे प्रोजेक्ट में भिन्न होता है।
    एक परियोजना टीम की गतिविधियों को परियोजना प्रबंधक द्वारा समन्वित किया जाता है, जिसके पास संगठन के अंदर और बाहर दोनों जगह विशेषज्ञों की सलाह और सहायता प्राप्त करने का अधिकार होता है। परियोजना संगठन की मुख्य अवधारणा किसी विशेष परियोजना पर काम करने और उसे पूरा करने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम को इकट्ठा करना है। परियोजना कर्मचारी अलग है और कार्यात्मक विभागों से स्वतंत्र है।
    परियोजना संगठन एयरोस्पेस, निर्माण, विमान निर्माण और प्रबंधन परामर्श जैसे व्यावसायिक क्षेत्रों में कार्यरत है। परियोजना संगठन उचित है जब उद्यम ऐसे कार्य कर रहा हो जिनके निश्चित लक्ष्य हैं जो वर्तमान संरचना के लिए लगातार और अपरिचित हैं, जो कि जटिल है। कार्यों की निर्भरता और फर्म की सफलता के लिए यह महत्वपूर्ण है।
    एक प्रोजेक्ट टीम एक अस्थायी सेट अप है। एक बार परियोजना पूरी हो जाने के बाद, टीम को भंग कर दिया जाता है और कार्यात्मक विशेषज्ञों को कुछ अन्य परियोजनाएं सौंपी जाती हैं।
    परियोजना संगठन के लाभ (Advantages of Project Organization):
    • यह एक जटिल परियोजना की मांग पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • यह संगठन के बाकी हिस्सों की सामान्य दिनचर्या को परेशान किए बिना परियोजना को समय पर पूरा करने की अनुमति देता है, और।
    • यह एक निश्चित शुरुआत, अंत और स्पष्ट रूप से परिभाषित परिणाम के साथ एक बड़ी परियोजना को पूरा करने में किसी भी चुनौती के लिए एक तार्किक दृष्टिकोण प्रदान करता है।
    परियोजना संगठन के दोष (Disadvantages of Project Organization):
    • एक परियोजना प्रबंधक के रूप में संगठनात्मक अनिश्चितता है जो विभिन्न क्षेत्रों से आए पेशेवरों से निपटना है।
    • संगठनात्मक अनिश्चितताओं से अंतर्विभागीय संघर्ष हो सकता है।
    • कर्मियों में काफी डर है कि परियोजना के पूरा होने से नौकरी छूट सकती है। असुरक्षा की यह भावना कैरियर की प्रगति के बारे में काफी चिंता पैदा कर सकती है।
  • मैट्रिक्स संगठन महत्वपूर्ण विशेषताएं :
    (Important characteristics of Matrix Organization):
    मैट्रिक्स संगठन यह एक व्यावसायिक संरचना है जिसमें कर्मचारी अपने कार्यों की उपेक्षा किए बिना विशिष्ट परियोजनाओं में भाग लेते हैं। दोहरी चैनलों का उपयोग किया जाता है: एक तरफ, मुख्य पदानुक्रम; और दूसरे पर, विशिष्ट कार्यक्रम |
    आम तौर पर, ये प्रोग्राम या पोर्टफोलियो किसी कंपनी द्वारा दी जाने वाली सेवाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक बार क्लाइंट और सेवा की आवश्यकता को परिभाषित करने के बाद, कंपनी एक परियोजना शुरू करती है जिसमें विभिन्न विभागों के कर्मियों के साथ एक बहु-विषयक टीम बनाई जाती है।
    इस प्रकार का एक संगठन पारंपरिक संगठनात्मक चार्टों के अनुसार कार्यों द्वारा समूहीकृत कर्मचारियों के अपने पेरोल की संरचना को बनाए रखता है, लेकिन बाजार के परिवर्तनों और मांगों के अनुकूल होने के लिए उन्हें और अधिक तेजी से संतुष्ट करने के लिए तैयार किया जाता है।
    दूसरे शब्दों में, यह अपने सफल समापन के लिए परियोजनाओं के व्यक्तिगत नियंत्रण में लचीलापन और अधिक सुरक्षा के फायदे प्रदान करता है, और संगठन के भीतर विकास और संवर्धन के अवसर भी प्रदान करता है। यह अभ्यास जिम्मेदारियों, सहयोग और अंतर्विभागीय संचार, संसाधनों और कौशल के साझाकरण और एक गतिशील कार्य वातावरण के प्रतिनिधिमंडल को बढ़ावा देता है।
    मैट्रिक्स संगठन ने ग्राहकों के तेजी से प्रतिक्रिया के लिए कंपनियों के उत्पादन कार्यों को अनुकूलित करने के लिए 1970 के बाद लोकप्रियता हासिल की |
    जिन कंपनियों ने यह निर्णय लिया था, वे इस आंतरिक संरचना को गुप्त रूप से संभव वित्तीय अस्थिरता से बचाने के लिए इस्तेमाल करती थीं, दोनों ही रूढ़िवादी कॉर्पोरेट आलोचना और प्रतियोगिता द्वारा इसके संरचनात्मक मॉडल की प्रतिलिपि द्वारा |
    मैट्रिक्स संगठन की आठ मुख्य विशेषताएं :
    (Eight important characteristics of Matrix Organization):
    1. यह परियोजनाओं के आधार पर काम करने की अनुमति देता है (It allows to work on projects basis) :
      यह तत्व वह है जो शायद मैट्रिक्स की लचीली और दोहरी संरचना को जन्म देते हुए पारंपरिक रैखिक पदानुक्रम की संगठनात्मक संरचनाओं को आधुनिक और गतिशील बनाता है। कंपनी अपनी विभागीय कार्यक्षमता को प्रभावित किए बिना एक साथ कई परियोजनाओं पर काम कर सकती है |
      एक परियोजना का जन्म विभिन्न कौशल और ज्ञान के लोगों के साथ एक कार्य दल के निर्माण के बाद होता है। यह उपकरण अस्थायी है और ग्राहक की जरूरतों को पूरा करने के लिए इकट्ठा किया गया है |
      आमतौर पर परियोजना के कुल या आंशिक प्राप्ति के लिए प्रोग्राम किए गए समय को पूरा किया जाता है। एक बार परियोजना पूरी हो जाने के बाद, सदस्यों को अन्य कार्यक्रमों को फिर से सौंपा जा सकता है। श्रमिक कभी भी अपने मूल विभाग से संबंधित नहीं होते हैं |
    2. प्रतिभाओं और संसाधनों का संरक्षण (Conservation of talents and resources) :
      योग्य कर्मियों और संसाधनों को कार्यात्मक विभागों और परियोजना टीमों के बीच साझा किया जा सकता है। इस तरह वे संगठन के भीतर और अधिक इकाइयों के लिए और अधिक कुशलता से उपयोग किए जाते हैं |
    3. संचार और मुफ्त जानकारी का प्रवाह (Communication and free information flow) :
      मैट्रिक्स संरचना कर्मचारियों को विभागीय सीमाओं के बावजूद अधिक तेज़ी से संवाद करने की अनुमति देती है । यह कहना है, सूचना संगठन के दोनों ओर और पक्षों की ओर बहती है |
      उसी परियोजना की उपयोगी जानकारी आवश्यक रूप से संलग्न नहीं है; यह सभी के लिए उपलब्ध हो सकता है। यह सूचना सिलोस को रोकता है और एक सहकारी कार्य वातावरण बनाता है जो संगठन को एकीकृत करता है |
    4. यह एक ही समय में दो प्रबंधन आंकड़ों के अस्तित्व की अनुमति देता है (This allows the existence of two management data at the same time) :
      प्रत्येक नई कार्य टीम को एक परियोजना प्रबंधक सौंपा जाता है, जो परियोजना के दौरान टीम के सदस्यों के प्रमुख के रूप में कार्य करता है। प्रभारी के इस व्यक्ति के कार्य अधीनस्थ नहीं हैं या प्रत्येक विभाग के निश्चित प्रबंधकों के सामने नहीं रखे गए हैं |
      इसलिए, कई बार, एक कर्मचारी के एक ही समय में दो बॉस हो सकते हैं। इस प्रणाली के लिए संघर्ष नहीं है, दोनों प्रमुखों के बीच अधिकार और जिम्मेदारी के विभाजन के मापदंडों को अच्छी तरह से परिभाषित करना महत्वपूर्ण है |
    5. भविष्य के प्रबंधकों का विकास करना (Developing future managers) :
      परियोजना के सदस्यों में अस्थायी कार्यों का काम मैट्रिक्स संगठन को भविष्य के प्रबंधकों के प्रशिक्षण के लिए एक उत्कृष्ट परिदृश्य बनाता है, क्योंकि वे एक बहु-विषयक कार्य वातावरण में पहचानना आसान है |
    6. जिम्मेदारियों का भार प्रत्यायोजित किया जाता है (Weight of responsibilities is delegated) :
      परियोजना प्रबंधक स्थापित समय और बजट के भीतर परियोजना के पूरा होने के लिए सीधे जिम्मेदार है। यह कार्यों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए मजबूत नेतृत्व का आह्वान करता है |
      परियोजना की सफलता प्रबंधक के निर्णय लेने पर निर्भर करेगी, संगठन की पदानुक्रम की परवाह किए बिना। यह तौर-तरीके कार्यों और प्रक्रियाओं को विकेंद्रीकृत भी करता है, जिससे पूरे ढांचे में एक निश्चित स्तर की परिचालन स्वतंत्रता मिलती है |
    7. तेजी से और अधिक कुशल प्रतिक्रियाएं प्रदान करता है (Provides faster and more efficient responses) :
      एक नई परियोजना के लिए अंतः विषय टीमों का गठन काफी जल्दी हो सकता है, और यह संभावना है कि कार्यक्रम लगभग तुरंत शुरू हो जाएगा |
      परियोजनाएं उन विशेष सेवाओं और उत्पादों पर आधारित होती हैं जिनका उपयोग कंपनी की पेशकश करने के लिए किया जाता है; फिर, कर्मियों को नियुक्त करने और काम शुरू करने का समय न्यूनतम है और कमांड की एक रैखिक श्रृंखला के नौकरशाही अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है |
      यह कंपनी को बाजार की मांग के अनुसार जल्दी से अनुकूलन करने की अनुमति देता है, बहुत कम समय में संतोषजनक गुणवत्ता परिणाम देता है और यदि आवश्यक हो, तो तुरंत एक और परियोजना शुरू करता है।
      यह समानांतर में विकसित होने वाली कई परियोजनाओं के अस्तित्व की भी अनुमति देता है |
    8. किसी परियोजना का अंत काम का अंत नहीं है (The end of a project is not the end of work) :
      एक बार एक परियोजना बंद हो जाती है या समाप्त हो जाती है, कंपनी को कर्मचारियों के स्थानांतरण के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि कर्मचारियों ने अपनी नौकरी से संबंधित कभी नहीं रोका। इससे कंपनी को लागत कम होती है |
      कुछ कंपनियों में प्रत्येक टीम के सदस्य के लिए विशेष भुगतान या प्रति प्रोजेक्ट बोनस का आंकड़ा संभाला जाता है, लेकिन वे कर्मचारी के नियमित वेतन से स्वतंत्र हैं |
      दूसरों में, निश्चित नौकरी की स्थिति और एक टीम या परियोजना के लिए असाइनमेंट दोनों रोजगार कार्यों का हिस्सा हैं |
    9. मैट्रिक्स संगठन के साथ कंपनियों के उदाहरण : (Examples of companies with matrix organization) :
      • पनाह देना (Sheltering) :
        स्विस बहुराष्ट्रीय कंपनी नेस्ले दुनिया की सबसे बड़ी खाद्य उत्पादक है, और इसके 29 से अधिक पंजीकृत ब्रांड हैं जिनकी वार्षिक बिक्री 1.1 बिलियन डॉलर से अधिक है। यह निगम मूल कंपनी की संरचना के तहत काम करता है. नेस्ले के विकेन्द्रीकृत संगठन अधीनस्थ शाखाओं को उच्च-स्तरीय स्वतंत्रता का आनंद लेने की अनुमति देता है | यद्यपि बड़े रणनीतिक निर्णय उच्चतम स्तरों पर किए जाते हैं, कई दैनिक संचालन स्थानीय इकाइयों या विभागों को सौंपे जाते हैं |
      • एबीबी ग्रुप (ASEA ब्राउन बोवरी) :
        यह स्वचालित औद्योगीकरण (रोबोटिक्स, इलेक्ट्रिक पावर और इलेक्ट्रॉनिक्स) की शाखा में एक बहुराष्ट्रीय निगम है जिसने 1980 के दशक के बाद से कंपनियों के कई प्रमुख विलय और अधिग्रहण किए हैं जिन्होंने अच्छी वृद्धि की अनुमति दी है |
        2001 में, मैट्रिक्स संगठन को दुनिया भर में गतिविधियों को एकीकृत करने और स्विट्जरलैंड में अपने मुख्यालय से संचालन विकेंद्रीकृत करने के लिए पेश किया गया था।. यह सफल साबित हुआ, ग्राहकों के साथ अधिक निकटता और बहुत तेज और अधिक कुशल निर्णय लेने की प्रक्रिया की अनुमति दी | यह कुछ बड़ी कंपनियों में से एक है जो संरचनात्मक मैट्रिक्स को लागू करने में सक्षम है। इसके संचालन को चार वैश्विक प्रभागों में आयोजित किया जाता है, जिन्होंने उद्योग या उत्पाद श्रेणी के किसी विशेष क्षेत्र पर केंद्रित विशिष्ट व्यावसायिक इकाइयों का गठन किया है।.
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